Sh. Ram Sharan Yuyutsu on a Award Function

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Sh. Jitender Ahlawat Gives Speech on a award Function

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सोमवार, 30 अप्रैल 2012

भवन व अन्य निर्माण कामगारों के लिए कल्याणकारी योजनाएं

स्वास्थ्य बीमा योजना: निधि के सदस्यों के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना चलाई जा रही है जिसके तहत प्रत्येक सदस्य अपने परिवार के चार सदस्यों सहित वर्ष में 30,000 रूपये तक का ईलाज करवा सकते हैं। इसके लिए उनसे कोई राशि नहीं ली जाएगी।
इसके अतिरिक्त कामगार एवं उसके परिवार के 4 सदस्यों के लिए एक अन्य स्वास्थ्य योजना चलाई जा रही है जिसमें वह संक्रामक रोगों जैसे - कैंसर, एड्स, टी.बी. एवं हृदय रोग आदि का सरकारी अस्पताल में ईलाज करवाने पर इसमें खर्च हुई एक लाख रूपये तक की राशि का भुगतान ले सकता है।
लड़की की शादी हेतु कन्यादान सहायता: निधि के सदस्य की लड़की की शादी के लिए उसके आवेदन पर 21000 रूपये की कन्यादान राशि की सहायता उसकी दो बेटियां तक प्रदान की जाएगी।
मकान की खरीद एवं निर्माण हेतु अग्रदान: निधि का सदस्य, जिसकी निधि में लगातार 5 वर्षों की सदस्यता होगी और सेवा निवृति के लिए कम से कम 15 वर्ष की सेवा शेष होगी को उसके आवेदन पर मकान की खरीद के लिए अथवा मकान के निर्माण के लिए अग्रदान के रूप में 100000 रूपये तक की राशि की स्वीकृति दी जा सकती है जिसे आसान किश्तों में वसूल किया जाएगा।
मृत्यु होने पर सहायता: कार्य के दौरान दुर्घटना होने के कारण सदस्य की मृत्यु होने पर उसके नामजदों/आश्रितों को उनके आवेदन  पर 125000 रू. की सहायता प्रदान की जाएगी तथा स्वाभाविक मृत्यु होने की दशा में 75000 रू. की सहायता प्रदान की जाएगी।
शिक्षा हेतु वित्तीय सहायता: सदस्यों के बच्चों को बोर्ड द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रमों अनुसार शिक्षा हेतु 2000 रूपए से 12500 रूपए तक की वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है बशर्ते बच्चे ने पिछली श्रेणी में 50 प्रतिशत या इससे अधिक अंक अर्जित किए हों। यह सहायता 8वीं कक्षा के पश्चात आगामी सभी पाठ्यक्रमों के लिए लागू है।
मातृत्व भत्ता: प्रत्येक महिला कर्मी जो निधि की सदस्य है को उसके प्रसूतिकाल में 5000रूपए का मातृत्व भत्ता दिया जाएगा, परन्तु यह भत्ता दो बार से अधिक नहीं दिया जाएगा। यह लाभ पंजीकृत श्रमिक की पत्नी को भी देय होगा।
औजारों की खरीद हेतु ऋण: निधि के सदस्य, जिनकी निधि में लगातार 3 वर्षों की सदस्यता होगी और आयु 55 वर्ष से कम होगी, को उनके आवेदन पर औजार खरीदने के लिए 5000 रूपये का एडवांस दिया जा सकता है, जिसे आसान किश्तों में वसूल किया जाएगा।
अशक्तता पेंशन: निधि का ऐसा सदस्य, जो लकवा, कुष्ठ रोग, कैंसर, तपेदिक, दुर्घटना आदि के कारण स्थाई रूप से अशक्त हुआ हो, को 300 रूपये प्रतिमास की अशक्तता पैंशन दी जाती है। पैंशन के अतिरिक्त उसको उसकी अशक्तता की प्रतिशतता के आधार पर 30000 रूपये तक की राशि वित्तीय सहायता के रूप में प्रदान की जा सकती है।
शादी हेतु वित्तीय सहायता: निरंतर 3 वर्ष की सदस्यता रखने वाले भवन कर्मकार अपने बच्चों की शादी के लिए एवं महिला सदस्य भी अपनी स्वयं की शादी के लिए 2000 रूपये की वित्तीय सहायता लेने के लिए पात्र होंगे। यह सहायता सदस्य के दो बच्चों की शादी के लिए स्वीकृत की जाएगी।
अंतिम संस्कार के लिए वित्तीय सहायता:  किसी सदस्य की मृत्यु पर उसके नामजदों/आश्रितों को उनके आवेदन पर अंतिम संस्कार के खर्च हेतु 5000रूपये की राशि का भुगतान किया जाएगा।
पैंशन: निधि का सदस्य जो एक वर्ष या उससे अधिक समय से भवन कर्मकार के रूप में कार्य कर रहा हो, 60 वर्ष की आयु पूरी करने पर 500 रू. प्रति मास पैंशन का हकदार होगा।
पारिवारिक पैंशन: पैंशनभोगी की मृत्यु की दशा में पारिवारिक पैंशन उसके जीवित पति/पत्नी को दी जाएगी। पारिवारिक पैंशन की राशि पैंशन भोगी द्वारा ली जा रही राशि का 50 प्रतिशत होगी।
अन्य विशेष सुविधाएं: 1. निःशुल्क चिकित्सा प्रदान करने हेतु चलती-फिरती डिस्पैंसरी की सुविधा प्रदान की जा रही है।
2. अस्थाई निवास स्थानों/निर्माण स्थलों पर चलती-फिरती शौचालयों की सुविधा प्रदान की जा रही है।
3. कार्यस्थल पर छोटे बच्चों की देखभाल के लिए अस्थाई शिशु गृह की सुविधा प्रदान की जा रही है।
4. चार वर्षों में एक बार, प्रसिद्ध धार्मिक/ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण करवाने की निःशुल्क सुविधा उपलब्ध की जा रही है। इस भ्रमण की अवधि 10 दिनों से अधिक नहीं होगी।
    अधिक जानकारी एवं विभिन्न सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए अपने नजदीकी उप निदेशक या सहायक निदेशक, औद्योगिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य, श्रम विभाग या बोर्ड हरियाणा के कार्यालय से संपर्क किया जा सकता है।
 

 विश्व शिल्पी सैम पित्रोदा-एक प्रेरक व्यक्तित्व

गत 31 जनवरी 2012 को विश्वकर्मा समाज के शिखर पुरूष सैम पित्रोदा जो भारत में दूरसंचार क्रांति के जनक एवं प्रधानमंत्री के तकनीकी सलाहकार (कैबिनेट मंत्री स्तर) हैं, ने लखनऊ में कांग्रेस पार्टी का घोषणा पत्र जारी करते समय कहा कि ‘‘मैं बढ़ई का बेटा हूं और मुझे विश्वकर्मा होने पर गर्व है।’’ उल्लेखनीय है कि कांग्रेस पार्टी ने पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों में सेम पित्रोदा को अपना स्टार प्रचारक बना कर सभी पिछड़े वर्गों को अपनी तरफ आकर्षित करने का प्रयास किया है।
    अभाविम के तत्वावधान में लखनऊ स्थित विश्वकर्मा मंदिर में श्री सैम पित्रोदा का अभिनन्दन किया गया। उक्त अवसर पर श्री सैम पित्रोदा ने स्वयं अपना जीवन परिचय देते हुये कहा कि उनका जन्म दिनांक 16 नवंबर 1942 को एक गरीब बढ़ई परिवार में टिटिलागढ़ (उड़ीसा) में हुआ। उनके पिता गुजरात से उड़ीसा माइग्रेट कर गये थे। वे व उनका परिवार गांधी जी से प्रभावित था। बड़ौदा से एम.एस.सी. करने के बाद उन्होंने इलेक्ट्रिकल इन्जीनियरिंग की डिग्री इलिनियस इन्स्टीट्यूट शिकागो (अमेरिका) से प्राप्त किया। तब से दूरसंचार क्षेत्र में काम करना शुरू किया और कई आविष्कार कर उन्हें पेटेंट करवाया। इसी दौरान उन्होंने अपनी महिला मित्र से शादी की व अपने माता-पिता व भाईयों को भी अमेरिका बुलवा लिया। उनके दो पुत्र हैं जो अमेरिका में अपना व्यवसाय कर रहे हैं।
    श्री पित्रोदा का पूरा नाम सत्य नारायण गंगाराम पित्रोदा है। वे ‘‘सी-सेम’’ के संस्थापक व सी.ई.ओ. हैं जो मोबाइल संचार में विश्व में बेजोड़ तकनीक है जिसे ‘‘वन वेलेट’’ कहा जाता है। इन्होंने यू.एन.ओ. में एडवाइजर के रूप में भी अपनी सेवाएं दी हैं। 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. इन्दिरा गांधी के बुलावे पर भारत आये और ‘‘सी-डाट’’ की स्थापना की। 1987 में वह तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी के सलाहकार (राज्य मंत्री स्तर) बने और भारत में दूरसंचार व कम्प्यूटर क्रांति के पुरोधा बने। राष्ट्रहित में ये टोकन के रूप में मात्र एक रूपया प्रतिमाह तनख्वाह लेते हैं। भारत को विश्व में दूरसंचार तकनीक का पुरोधा बनाने का सारा श्रेय श्री पित्रोदा को जाता है। 2004 में भारत के प्रधानमंत्री ने इन्हें ज्ञान आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया। शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी रिपोर्ट प्रस्तुत कर इन्होंने देश में हलचल मचायी। वर्ष 2009 में प्रधानमंत्री ने इन्हें अपना तकनीकी  सलाहकार (कैबिनेट मंत्री स्तर) बनाकर इनकी विद्वता को सराहा। ये रेलवे कमेटी के सदस्य भी नामित किये गये हैं।
    श्री सैम पित्रोदा उपाधियों के पर्याय रहे हैं। इन्हें देश विदेश एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कई अवार्ड मिले हैं। इन्हें कनाडा का ‘सी.आई.एफ. अवार्ड (2008), डेटाक्वेस्ट आई.टी. लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड (2002), पद्म विभूषण (2009), ग्लोबल इण्डियन एवार्ड (2009), वर्ल्ड प्रामीनेट लीडर (2008), विश्वकर्मा रत्न (अभाविम) (2009) आदि अवार्ड समय-समय पर मिलते रहे हैं। श्री पित्रोदा इस देश की धरोहर हैं। उनकी विद्वता पर विश्वकर्मा समाज को ही नहीं बल्कि पूरे देश की जनता को गर्व हैं।
    श्री पित्रोदा की पहल पर ही प्रवासी भारतीय सम्मेलन भारत में होने लगे हैं जिसके माध्यम से विदेशों में रह रहे उद्योगपति भारत में अपना योगदान कर रहे हैं तथा भारत ने भी दोहरी नागरिकता प्रदान कर विदेशों में रहने वाले भारतीयों को सम्मान दिया है। अभी जनवरी माह में इन्होंने जयपुर में आयोजित प्रवासी भारतीय सम्मेलन की अध्यक्षता की थी।
    श्री पित्रोदा की पहल पर ही कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में कौशल एवं रोजगार मिशन के तहत पांच वर्ष में बीस लाख युवाओं को रोजगार देने का वायदा किया है।
    श्री पित्रोदा के सहयोग से ही वर्ष 1989 में अभाविम के महासचिव श्री सी.पी. शर्मा ने भारत में प्रथम बार विश्वकर्मा समाज को केन्द्र सरकार द्वारा भगवान विश्वकर्मा पर डाक टिकट, कंेसिलेशन सील, स्पेशल कवर जारी करवा कर सम्मानित एवं गौरवान्वित कराया। कांग्रेस महासचिव श्री राहुल गांधी द्वारा विश्व के इस महान वैज्ञानिक की जाति का खुलासा कर और श्री पित्रोदा द्वारा स्वयं विश्वकर्मा कहलाने पर गौरव अनुभूत करने के बयान पर सारा पिछड़ा समाज गौरवान्वित है। पित्रोदा का सिद्धान्त है कि-‘‘कर्म करो-आगे बढ़ो और सृष्टि के निर्माता भगवान विश्वकर्मा की तरह विश्व के सृजनहार बनो।’’ 
-डॉ. सी.पी. शर्मा, लखनऊ

गर्व से लिखों हम विश्वकर्मा हैं

 संस्कार बालक को अपने ही घर से प्राप्त होता है, जो समाज की संस्कृति का रूप लेती है। यही कारण है कि विश्वकर्मा एक संज्ञा के साथ-साथ विशेषण के तादात्म्य में सूर्य, इंद्र, ब्रह्म, विष्णु एवं शिव के साथ अन्य देवों की सृजनात्मकता में साथ दिखाई देता है। इसलिए विश्वकर्मा एक देवता ही नहीं, भारतीय संस्कृति में सृजन के भाव की व्याप्ति इतनी अधिक है कि मानव जीवन का प्रत्येक क्षेत्र इस देवशक्ति से नियंत्रित एवं नियमित है। विश्वकर्मा के व्यापक शब्दार्थ प्रयोग के कारण इसका स्वतंत्र देववाची स्वरूप प्रायः कम होता गया तथा सर्वव्याप्त, सर्वसृष्टा, सर्वद्रष्टा एवं देवशिल्पी का भाव ही अधिकतम लोकप्रिय हुआ।
    विश्वकर्मा या त्वष्टा को निर्माता, रूपकार एवं देवशिल्पी आदि रूपों में देखा गया। शिल्प की इस विचारधारा को विकसित होने का अधिक विस्तृत क्षेत्र मिला। विश्वकर्मा सृजन एवं शिल्प के आराध्यदेव बन गये तथा सामाजिक आर्थिक एवं शिल्पोदयक धार्मिक जीवन में भवनों, उपकरणों, वाहनों, आयुधों और मंदिरों  आदि के निर्माण मं व्यक्तिगत नाम के साथ-साथ कुल परम्पराऐं प्रचलित होने से गुरु/आचार्य बन गये। विविधता में एकता प्रस्थापन के प्रयास के कारण बहुदेववादी चिंतन में एकैश्वरवाद के रूप में जिन-जिन देवताओं की कल्पना हुई उनमें ‘‘विश्वकर्मन्-क्रिया के कारण प्रारंभ में इसका स्वरूप अस्पष्ट हो गया था, परंतु कालांतर मंे विशिष्ट गुणों एवं कार्यो के कारण उसका स्वरूप पुनः स्पष्ट हेा गया। आज सर्वाधिक सुस्पष्ट सृजनात्मक देवता के रूप में ‘‘विश्वकर्मा’’ के पूजा की परंपरा है।
    विश्वकर्मा की कुल परंपरा में अनेक वर्गो की कल्पना की गई है। विश्वकर्मा की संततियों के रूप में कालांतर में इन्हें अलग-अलग मनु,मय, त्वष्टा, शिल्प तथा देवज्ञ के रूप में वर्णित किया गया। प्रत्येक निर्माता विश्वकर्मा की कलाकृति है, भले ही उसके निर्माता प्रत्येक काल में अलग अलग रहे हों परंपरा से जोड़कर देखा गया है। विश्वकर्मा शास्त्रज्ञ भी है और शिल्पज्ञ भी। यह वैदिक परंपरा है क्योंकि मंत्रद्रष्टा भी है तथा देवता भी। शिल्प ईश्वरीय कर्म है µ ऐलीफेन्टा, एलोरा, अजन्ता की कलाकृति चारों धामों के मंदिरों की कलाकृति, अंतरिक्ष में गोचर होने वाले उपकरणों में पुष्पक विमान, कुबेर का भवन, स्वर्गनगरी, सूर्य की प्रखर किरणों को कम करने की कला, माँ भवानी के साथ सभी देवताओं के अस्त्र-शस्त्र उस शिल्पी के द्वारा प्रतिपादित किये। स्वर्ण एवं रत्नों में कलात्मक क्रिया तथा मूल खनिजों में आकर्षण पैदाकर संसार को प्रदत्त करने वाला विश्वकर्मा ही है।
    भले ही अन्य देवताओं की प्रतिभा को इन चक्षुओं से न देखकर फिर भी स्वीकार करते हैं, अपितु विश्वकर्मा देव की प्रतिभा एवं कला का सभी अवलोकन करते हैं। अतः हम जैसी संततियों को गर्व सहित विश्वकर्मा टाइटिल अपने नाम के साथ अवश्य ही लिखना चाहिए जो कि न केवल संज्ञा बल्कि गुण विशेष के कारण ‘विशेषण’ है। उनकी संततियों को अपनी शिल्प योग्यता का परिचय एवं प्रदर्शन संसारवासियों को देना चाहिए तथा गर्व से सिर ऊंचा उठाकर आल्हादित स्वर में उद्घोष करें µ ‘‘जय विश्वकर्मा तथा गर्व से लिखें हम विश्वकर्मा हैं।’’
-जे.पी. विश्वकर्मा से. नि. प्राचार्य, जबलपुर

 

समाज की तस्वीर पेश करती हैं पत्रिकाएं

  मनुष्य को सामाजिक प्राणी कहा गया है। वह जिस समाज में जन्म लेता है, वहीं से संस्कार प्राप्त करता है और बड़ा होता है, उस समाज के प्रति वह ऋणी होता है। यह ऋण उस समाज की सेवा करके ही चुकाया जा सकता है। अतः प्रत्येक मनुष्य को चाहिए कि वह अपनी सामर्थ्य के अनुसार तन, मन और धन से समाज की सेवा करें।
    समाज सेवा के कई तरीके हो सकते है; जैसे-
1. किसी जरूरतमंद की जरूरत पूरी करके। 2. किसी असहाय की सहायता करके। 3. किसी गरीब एवं होनहार विद्यार्थी की आर्थिक मदद करके। 4. सामाजिक संस्थाओं को समाजोपयोगी बना करके। 5. सभा-सम्मेलनों का आयोजन करके। 6. सामाजिक कार्यक्रमों/आयोजनों में आर्थिक मदद करके/दान देकर। 7. साहित्य प्रकाशित करके। 8. सामाजिक पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित करके। 9. सामाजिक पत्र-पत्रिकाओं का ग्राहक/सदस्य बनकर।
    सामाजिक पत्र-पत्रिकाएं समाज की तस्वीर पेश करती हैं। समाज में कहां क्या हो रहा है, उसकी जानकारी ये पत्र-पत्रिकाएं घर बैठे हम तक पहुंचाती रहती हैं। पत्र-पत्रिकाएं हमारे ज्ञान को अद्यतन करती रहती हैं। पत्र-पत्रिकाएं हमें कर्त्तव्य-बोध भी कराती हैं। पत्र-पत्रिकाएं सामाजिक बुराइयों को दूर करने, समाज में चेतना लाने, परस्पर प्रेम और सौहार्द बढ़ाने आदि के कार्य करती हैं। अतः ऐसी पत्र-पत्रिकाओं के प्रति हमारा लगाव होना स्वभाविक है। हम ऐसी पत्र-पत्रिकाओं को अपने दैनिक पठन-पाठन में अवश्य शामिल करें, उन्हें उचित महत्त्व एवं स्थान दें तथा उनकी उपयोगी बातों से लाभ उठाएं।
    इन पत्रिकाओं के प्रकाशकों और संपादकों को पत्रिका को मूर्त रूप प्रदान करने में कड़ी मेहनत करनी पड़ती है और अर्थ-व्यवस्था सुदृढ़ करनी होती है तब कहीं वह पत्रिका हमारे पास पहुंचती है। पत्रिका के प्रकाशकों और संपादकों को कवियों एवं लेखकों के बीच निरंतर संपर्क बनाए रखना होता है, जो उन्हें समय-समय पर प्रकाशन सामग्री प्रेषित करते रहते हैं। पत्रिका की पाण्डुलिपि तैयार करने और मुद्रण संबंधी कार्यों में संपादकों को अपना काफी समय देना पड़ता है। कई बार तो उन्हें भूखे-प्यासे रहकर और देर रात तक जागकर इन सब कार्यों को संपादित करना पड़ता है। पत्रिका के मुद्रण कार्य को लेकर प्रेस के कितने चक्कर लगाने पड़ते हैं, कुछ पता नहीं। पत्रिका की अर्थ-व्यवस्था के लिए विज्ञापनदाताओं, दानदाताओं और सदस्यों की तलाश निरंतर जारी रखनी पड़ती है। इन तमाम परिस्थितियों से गुजरकर हम तक पहुंचती हैं पत्र-पत्रिकाएं। अतः हमारा भी कर्त्तव्य बनता है कि हम ऐसी पत्र-पत्रिकाओं का स्वागत करें जो हमारे लिए प्रकाशित की जाती हैं और उनके संपादकों व प्रकाशकों को हम धन्यवाद देना कदापि न भूलें जो समाज की भलाई के लिए इतने सारे कष्टों को उठाकर रचनात्मक कार्य करते रहते हैं।
    किसी भी पत्रिका के प्रकाशन के लिए सुदृढ़ अर्थ-व्यवस्था का होना बहुत जरूरी है। बिना इसके सारी मेहनत पर पानी फिर जाता है। पाठकों को भी चाहिए कि वे पत्रिका के सदस्य बनकर आर्थिक सहयोग करें ताकि विचारों के आदान-प्रदान की इस महत्त्वपूर्ण कड़ी ‘पत्रिका’ को जीवनदान मिल सके। अर्थाभाव के कारण आज कई पत्रिकाओं का प्रकाशन बंद है। कई पत्रिकाओं का प्रकाशन इसलिए भी बंद हो गया क्योंकि उनके संपादकों व प्रकाशकों ने पाठकों की रूचियों और जरूरतों की ओर ध्यान नहीं दिया और शायद इसीलिए पाठकों ने भी उन पत्रिकाओं की ओर से अपना ध्यान हटा लिया। किसी भी पत्रिका के लंबे सफर के लिए यह आवश्यक है कि उसके अच्छे पाठक हों और पाठकों की संख्या अधिक हो। 
-धनपति प्रसाद विश्वकर्मा
रायबरेली (उ.प्र.)

विश्वकर्मा दिवस या फिर श्रम-दिवस

 मैंने बचपन में कहानी सुनी थी कि राजा भोज के उत्तराधिकारी एक राजा थे, नाम अब मैं भूल चुका हूँ क्योंकि बात काफी समय पहले सुनी थी। उस राजा ने सुन रखा था कि भारत (उस समय का आर्यावर्त) सोने की चिड़िया था, परन्तु सम्भवत उसे विश्वास नहीं हो पा रहा था। एक दिन अचानक सचमुच उसके बगीचे में सोने की चिड़िया आ गई, राजा का दिल ललचाया कि चिड़िया को पकड़ा जाये। सभी राज दरबारियों की कोशिश असफल होने पर राज पंडित ने कहा मैं आपकी मनोकामना पूरी करूँगा। सो पंडित ने  मंत्र पढ़ कर चिड़िया को उड़ा दिया। समाचार राजा तक पहुँचा तो ब्राह्मण ने उत्तर दिया, महाराज मैंने चिड़िया को इसलिए उड़ाया है कि चिड़िया आपके हाथ नहीं लगनी थी, ऐसा ज्योतिष में लिखा है और उसके लिये आप उदास रहते, ऐसा मैंने जान लिया था। सो वही बात आज मैं अपनी भारत माता के लाडले सपूतों में देख पा रहा हूं कि जो देश कर्म प्रधान देश बनकर सोने की चिड़या कहलाता था, आज वहीं देश भाग्य प्रधान और कलम प्रधान बन गया है। जिस भूमि ने संसार में सर्वप्रथम सभ्यता दी एवं विज्ञान को जन्म देकर पुष्पक-विमान (रामायण कालीन) तथा दूर-दर्शन (टैलिविजन महाभारत कालीन जिसका उपयोग संजय ने किया था) आदि का आविष्कार कर संसार को आश्चर्यचकित किया था, आज उसी भारत में विज्ञानवेताओं एवं विश्वकर्माओं को उचित स्थान ना देकर हेय बनाया जा रहा है। उसी विश्वकर्मा की संतान जिसे देवताओं ने भी अभियन्ता के रूप में पुराण-प्रसिद्ध किया है।
    सच पूछिये तो विश्वकर्मा सही मानो में निर्माण के देवता हैं। अन्नकूट्ट जो आज हम मना रहे हैं (मंदिरों में घंटिया बजाकर) वास्तव में कर्मशालाओं में मनाना चाहिए, क्योंकि आज के दिन महर्षि विश्वकर्मा (शिल्पाचार्य त्वष्टा) ने हल बनाकर मानव को जमीन जोतना सीखाकर, सर्व प्रथम अन्न पैदा किया था, इसीलिए इस पर्व को अन्नकूट्ट कहने लगे। परन्तु बात फिर सोने की चिड़िया और पंडित वाली कथा याद आ जाती है कि बात कर्मशाला से चल कर मंदिरों में समाप्त हो जाती है। भारत सदैव से विज्ञानवेता होकर भी भाग्य प्रधान देश बन गया है। इनका विज्ञान साहित्य तो ले गया विदेशी और पीछे रह गया राहू और केतू का कालचक्र। वास्तव में मेरी अपनी धारणा यह मानती है कि वह सोने की चिड़िया अपने साथ जो पुस्तकें ले गयी थी तो वहाँ के लोगों ने पूछा पुस्तकें कहाँ से लाई हो तो उत्तर मिला शर्मा जी से इसी आधार पर लोग उन्हें शर्मन कहने लगे जो आज रूप बदलकर जर्मन बन गया हैै। गुलामी के सैंकड़ों वर्षों में विदेशी राज ने हमारी स्वस्थ परंपरा एवं प्रथा पर जबरदस्त आक्रमण किये, उदाहरण साक्षी है कि मलमल बुनकर के हाथ काटे गये, विश्व के सात आश्चर्यों में से सक्खर का पुल बनाने वाले लोहार के हाथ काट डाले गये और तभी से श्रम पराधीन हो गया और मौका परस्तों ने भाग्य प्रधान का नारा दे दिया।
    आज स्वतंत्रता पाये वर्षों बीत चुके हैं, परन्तु श्रमिक आज भी पराधीन है, कुर्सी, कलम एवं लक्ष्मी का। विदेशी सरकारों ने तो समझना शुरू कर दिया है कि मई दिवस पर क्रांति लाने वाला नारा ‘विश्व के श्रमिकों एक हो जाओ’ चिंगारी फूंक चुका है। परन्तु मई दिवस विध्वंसकारी, विनाशकारी हो सकता है, ऐसा मैं भी मान रहा हूं क्यों कि इसकी नींव स्वस्थ नहीं है। वास्तव में भारतीय संस्कृति एवं पौराणिक प्रथानुसार विश्वकर्मा दिवस ही हमारा राष्ट्रीय श्रम दिवस है। विश्वकर्मा ने कर्म स्वतंत्र के द्वारा हमें श्रम का मालिक बनाकर संसार में सम्मान का स्थान प्राप्त कराया है।
    विश्वकर्मा जिन्हें त्वष्टा भी कहा जाता है, स्वायंभव मन्वन्तर में देवताओं तथा प्रजापति के शिल्पी थे। वह शिल्प विज्ञान के प्रथम आचार्य थे। सुंद और अपसुंद के विनाशार्थ उन्होंने तिलोत्मा को उत्पन्न किया। त्रिपुरा सुर के विनाशार्थ शिव के रथ (मोटर) देवताओं के लिये वायुयान (हवाईजहाज) शिव-पार्वती के लिये लंका, कृष्ण के लिए द्वारिका एवं वृदावन, युधिष्ठिर के लिए हस्तिनापुर, देवताओं के शस्त्रागार और बज्र, भगवान विष्णु, शिव, इन्द्र के लिए क्रमशः चक्र, त्रिशूल एवं बज्र को निर्माण किया। यदि रामायण काल में सेतु बन्ध ना होता तो शायद रामायण का कोई और ही रूप होता। आज भी भारत को यदि शक्तिशाली देश मानें तो आप भी इस निष्कर्ष पर पहुंच जायेंगे कि विश्वकर्मा संसार के समस्त औद्योगिक विकास और उत्पादक श्रम के आदि-प्रवर्तक हैं। विश्वकर्मा की धनीभूत राष्ट्रीयता आज हमारे श्रम का मुख्य आदर्श है।
    आज हम राष्ट्र के पुनर्निमाण की बातें कहते परंतु इस लक्ष्य को प्राप्त करने वाले श्रमिक वर्ग को उच्च स्थान दिये बिना ऐसा सम्भव नहीं है। यह सभी की धारणा बन चुकी है। आज के इस पवित्र पर्व को जहां श्रमिक समाज समझने लगा और इस दिन विश्वकर्मा पूजा कर्मशालाओं, विश्वकर्मा मंदिर एवं सभी छोटी व बड़ी फैक्ट्रियों में होने लगी हैं। इस दिन श्रमिक अपने सभी औजारों, मशीनों को सजा कर मालाएं अर्पण कर पूजा अर्चना कर एवं मिठाई बांट कर शुभदिन कहते हैं। इसी प्रकार सरकार को भी इस दिन राष्ट्रीय दिवस मानकर श्रमिकों का उत्साहित करना चाहिए, क्योंकि इस दिन मानव अन्न ग्रहण करता है एवं इसी दिन ही विश्वकर्मा अवतरण दिवस भी माना जाता है, जो कि किसी एक का ना होकर सभी श्रमिक समाज का पूज्यनीय देवता है। विराट् विश्वकर्माणे नमः। 
रामशरण युयुत्सु
श्री अंगिरा शोध संस्थान, जीन्द (हरि.)

गर्व का अनुभव तो होगा ही

    पिछले दिनों समाचार-पत्रों में एक समाचार प्रकाशित हुआ कि कांग्रेस पार्टी ने राष्ट्रपति पद के आगामी कार्यकाल हेतु डॉ. सैम पित्रौदा के नाम पर चिंतन शुरु कर दिया है। वास्तव में आजकल कांग्रेस के पास बहुमत नहीं है, इसीलिए चिंतन शब्द की बात कही गई है, नहीं तो घोषणा ही कर दी जाती। इस समाचार को जानकर पांचाल समाज के लोगों की बांछे ही खिल गई। समाचार पढ़ते-पढ़ते प्रातःकाल की चाय के लेते समय मेरे पास भी कई पांचाल-मित्रों के फोन भी आ गए। वह खुशी के मारे फूले नहीं समा रहे थे। वास्तव में यह वही स्थिति थी, जो किसी को उसकी औकात से ज्यादा मिल जाए। परन्तु यह बात (स्थिति) तो हमारे समझने पर ही निर्भर करती है। देखा जाए तो इस समाज की ऊर्जा किसी भी स्थिति में कम नहीं है। इसी समाज में आदि शंकराचार्य जैसे आध्यात्मिक पुरुष, ज्ञानी जैल सिंह जैसे राजनीतिज्ञ, गोस्वामीदास जैसे समाज सेवक, न्यायमूर्ति जे.एम. पांचाल जैसे न्यायाधीश, यूरी गागरीन जैसे चन्द्रयात्री, एडोल्फ हिटलर जैसे सेनानायक हुए हैं।
    डॉ. सैम पित्रौदा भी विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक ही नहीं, भारत की मान-शान भी हैं। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सूझ-बूझ से डॉ. पित्रौदा ने सी. डॉट प्रणाली में एक आन्दोलन लाकर खड़ा कर दिया। इससे भारत में नए युग का सूत्रपात हुआ। इन्हीं के कारण आज भारत विश्व की ओर नहीं देख रहा है, बल्कि विश्व भारत की ओर देखने को मजबूर है।
    परन्तु पिछले दिनों कुछ राजनीतिक लोगों ने या तो कहें कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने सैम पित्रौदा को विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक से राजनीति का मोहरा बनाकर उनका प्रयोग किया। उ.प्र. के चुनाव में डॉ. पित्रौदा को पिछड़ा वर्ग का प्रतिनिधि बनाकर उनके नाम पर वोटें मांगी गई। डॉ. पित्रौदा भी सोनिया व राहुल की चॉबी का खिलौना बन गए। समाज के कई चिन्तक लोगों के बीच यह स्थिति चर्चा का विषय बन गई। परन्तु इसमें भी कोई संदेह नहीं है कि कांग्रेस पार्टी और उसके संचालक बहुत दूर की सोचकर इन्दिरा गांधी की शैली पर ज्ञानी जैल सिंह की तरह राष्ट्रपति के आसन पर उनको बैठाकर अपना सुरक्षा कवच मजबूत कर लेंगे।
    भले ही ज्ञानी जैल सिंह की तरह विश्वकर्मा समाज को इनसे कोई लाभ हो या ना हो परन्तु गर्व का पारा तो ऊँचाई को छू लेगा। उनके राष्ट्रपति के पद को सुशोभित करने पर समाज के लोगों की छाती तो गर्व से फूल ही जाएगी। इस समाचार से गर्व का अनुभव तो होगा ही यह स्थिति आने से पूर्व और उनको राष्ट्रपति के पद पर देखने के लिए हमारा भी नैतिक कर्त्तव्य बनता है कि हम सभी, पूरे विश्वकर्मा समाज के लोग अपनी-अपनी सभा, महासभा की एक विशेष बैठक आयोजित करके, प्रस्ताव पारित करके कांग्रेस पार्टी के कार्यालय में भिजवाएँ। इस प्रकार का विशेष प्रस्ताव तथा सहमति पत्र समाज के हर व्यक्ति की ओर से व्यक्तिगत रूप से भी पत्र लिखा जा सकता है। इससे डॉ. सैम पित्रौदा के पीछे पूरा समाज खड़ा दिखाई देगा और कांग्रेस को अपना प्रस्ताव रखने में बल मिलेगा। 
रामशरण युयुत्सु

रविवार, 29 अप्रैल 2012

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